आप सब 'पाखी' को बहुत प्यार करते हैं...

बुधवार, जून 30, 2010

खुल गया स्कूल...

गर्मी की छुट्टियाँ ख़त्म. आज से मेरा स्कूल खुल गया. अब घुमाई कम, पढाई की बातें ज्यादा. वैसे मैंने तो इन दो महीनों में खूब इंजॉय किया. ढेर सारे आइलैंड्स की सैर, खूबसूरत बीच, रिमझिम बारिश का सुहाना मौसम. कीचड़ वाले ज्वालामुखी देखे तो INS राणा पर जाकर उसे भी नजदीक से देखा. साइंस सिटी भी गई. खूब ड्राइंग-पेंटिंग की, आपको भी दिखाउंगी. ढेर सारी मस्ती, हंगामा और शरारतें....कित्ता मजा आया. आज जब मैं स्कूल गई तो मुझे रोना आ रहा था. सही बताऊँ इत्ते दिन बाद स्कूल जाना बड़ा अटपटा सा लगा..कुछ-कुछ बोरिंग सा. 7:30 पर स्कूल है, सो सुबह ही जगना भी पड़ा. पहले कित्ता अच्छा था, देर तक सोने को मिलता. अब तो सब कम हड़बड़ी वाला लगता है. ...पर दो-चार दिन तक तो ख़राब लगता ही है, फिर सब नार्मल हो जायेगा. चलिए मेरी पहले दिन की स्कूल जाने की फोटो देखते हैं.

ममा के साथ स्कूल जाना कित्ता अच्छा लगता है.

और स्कूल से आने के बाद आइस-क्रीम खाना ...

यमी-यमी...कित्ती स्वादिष्ट है. ममा आप भी लोगी क्या.

सोमवार, जून 28, 2010

कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी (Mud Volcano)

ज्वालामुखी का नाम तो सभी ने सुना होगा, पर कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी (Mud Volcano) का नाम सुना है क्या आपने...और अगर सुना है तो देखा है क्या. नहीं ना, तो चलिए मैं दिखाती हूँ.पिछले दिनों ममा-पापा के साथ मैं अंडमान के बाराटांग द्वीप पर घूमने गई, वहीँ पर मुझे ये कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी (Mud Volcano) देखने को मिले. पूरे भारत में ये सिर्फ अंडमान में ही पाए जाते हैं. 13 जून, 2010 को जनसत्ता अख़बार के रविवासरीय पेज पर इस सम्बन्ध में पापा का एक लेख 'कीचड़ वाला ज्वालामुखी' प्रकाशित भी हुआ था. उस लेख को भी मैं यहाँ दे रही हूँ, ताकि इस सम्बन्ध में सभी को जानकारी मिल सके- पंक (कीचड़) ज्वालामुखी सामान्यतया एक लघु व अस्थायी संरचना हैं जो पृथ्वी के अन्दर जैव व कार्बनिक पदाथों के अपक्षय से उत्सर्जित प्राकृतिक गैस द्वारा निर्मित होते हैं। गैस जैसे-जैसे अन्दर से कीचड़ को बाहर फेंकती है, यह जमा होकर कठोर होती जाती है। वक्त के साथ यही पंक ज्वालामुखी का रुप ले लेती है, जिसके क्रेटर से कीचड़, गैस व पत्थर निकलता रहता है। विश्व में अधिकतर पंक ज्वालामुखी काला सागर व कैस्पियन सागर के तटों पर मिलते हैं। इनमें वेनेजुएला, ताइवान, इंडानेशिया, रोमानिया और अजरबैजान के बाकू शहर प्रसिद्ध हैं। अब तक कुल खोजे गए 700 पंक ज्वालामुखी में से 300 पूर्वोतर अजरबैजान व कैस्पियन सागर में हैं। सबसे विशाल पंक ज्वालामुखी कैस्पियन सागर क्षेत्र में पाया गया है, जो कि लगभग एक कि0मी0 चैड़ा व उंचाई सैकड़ा मी0 में है। समुद्र के अंदर से तरल पदार्थ बाहर निकलने का पंक ज्वालामुखी एक प्रमुख स्रोत है। जहाँ सामान्य ज्वालामुखी में भूपटल को फोड़कर पिघले पत्थर, राख, वाष्प व लावा निकलते है, वहीं पंक ज्वालामुखी से कीचड़, गैस व पत्थर निकलते हैं। उत्सर्जन के दौरान निकला कीचड़ गर्म नहीं अपितु ठण्डा होता है।
बंगाल की खाड़ी में स्थित भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के बाराटांग द्वीप में जारवा क्रीक गाँव में 18 फरवरी 2003 की सांय 7:45 बजे सर्वप्रथम पंक ज्वालामुखी का उद्भव हुआ। जबरदस्त विस्फोट के साथ उत्पन्न इस प्रक्रिया में थोड़ा कंपन भी महसूस हुआ। इससे पूर्व 1983 में इसी जगह दरार पड़ गई थी। अंतिम बार यह 26 दिसम्बर 2004 को जबरदस्त विस्फोट व कंपन के साथ उत्सर्जित हुआ था। फिलहाल अंडमान में इस तरह के 11 पंक ज्वालामुखी पाए गए हैं, जिनमें से 08 बाराटांग व मध्य अंडमान में एवं 03 डिगलीपुर (उत्तरी अंडमान) में अवस्थित हैं। ये पंक ज्वालामुखी 1000-1200 वर्ग मी0 के क्षेत्र में विस्तृत हैं और लगभग 30 मी0 व्यास व 2 मी0 उंचे अर्धवृत्ताकार टिब्बे का निर्माण करते हैं। इनके चलते विवर्तनिक रुप से अस्थायी भू-भागों का निर्माण होता है और कालांतर में ऐसी परिघटनाओं से ही नए द्वीपों का भी निर्माण होता है। ये मानव व मानवीय संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं। फिलहाल ये पर्यटकों के लिए आर्कषण का केद्र-बिन्दु हैं।

गुरुवार, जून 24, 2010

पाखी का लैपटॉप


अब मेरे पास भी अपना लैपटॉप हो गया है.

पहले जब भी मेरा मन लैपटॉप पर कुछ करने को होता तो उसके लिए या तो मैं ममा का लैपटॉप यूज करती या कभी-कभी पापा का.

पर अब तो मजे ही मजे हैं. जब मन करेगा, अपना गेम खेलूँगी, ब्लॉग देखूंगी और आप लोगों के ब्लॉग पर भी घूमने आउंगी.

रविवार, जून 20, 2010

पापा मेरे सबसे प्यारे

आपको पता है, आज फादर्स डे है। वर्ल्ड फादर्स डे का आरंभ 20वीं सदी के आरंभ में हुआ। पहले इसका प्रभाव मात्र पाश्चात्य देशों में था, अब तो अपने इण्डिया में भी दिखने लगा है। वैसे यह कितना अजीब लगता है ना कि हर किसी के लिए एक दिन फिक्स कर दो, भला रिश्तों को भी दिनों में बांधा जा सकता है. पर आजकल ऐसा ही हो रहा है. खैर चलिए, आज इसी बहाने आपको वर्ल्ड फादर्स डे के बारे में बताती हूँ. और ये सब बातें भी पापा ने ही तो बताई है. उनका यह लेख पढ़िए ना-

फादर्स डे के आरंभ होने की भी एक रोचक दास्ताँ है. वाशिंगटन की एक महिला सोनोरा स्मार्ट डोड ने 1909 में स्पोकेन के सेंट्रल मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च में 'मदर्स डे' के बारे में सुना तो उन्हें पिता के लिए भी ऐसा ही दिन ' फादर्स डे' होने की जरूरत महसूस हुई। सोनोरा के पिता विलियम स्मार्ट ने अपनी पत्नी के गुजरने के बाद पूरे परिवार की देखभाल की थी और सोनोरा इसके लिए उन्हें दिल से धन्यवाद देना चाहती थी, लिहाजा पहली बार 1910 में जून महीने के तीसरे रविवार को 'फादर्स डे' मनाया गया। अर्थात इस साल 2010 में फादर्स-डे के 100 साल पूरे हो गए. इसके बाद धीरे-धीरे फादर्स-डे का रिवाज़ पश्चमी देशों में फैलने लगा. 1913 में अमेरिकी कांग्रेस में इसे राष्ट्रीय स्तर पर त्योहार के रूप में मनाने के लिए पहली बार बिल पेश किया गया। राष्ट्रपति विल्सन इसे आधिकारिक दर्जा देना चाहते थे लेकिन कांग्रेस ने इसका विरोध किया। उन्हें डर था कि कहीं इससे दिवस का व्यवसायीकरण न हो जाए। अमेरिका में कई बार यह बिल पेश किया गया लेकिन कांग्रेस ने इसे नामंजूर कर दिया। इस सबसे क्षुब्ध सीनेटर मार्गरेट ने 1957 में कांग्रेस को एक भावभीनी खत लिखा और कहा कि 'मदर्स-डे' के रूप में 40 सालों से माँ को सम्मानित किया जा रहा है जबकि पिता को नजरअंदाज किया जा रहा है। अंतत: 1966 में अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन ने पहली बार जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने के लिए पहली सरकारी घोषणा की। रुस में यह 23 फरवरी, रोमानिया में 5 मई, कोरिया में 8 मई, डेनमार्क में 5 जून, ऑस्ट्रिया व बेल्जियम में जून के दूसरे रविवार एवं ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैंड में इसे सितम्बर के प्रथम रविवार और भारत सहित विश्व भर के 52 देशों में इसे जून माह के तृतीय रविवार को मनाया जाता है। वैसे दुनिया में ममा-पापा से बढ़कर कोई नहीं. वे हमें कित्ता प्यार करते हैं. हमारी हर फरमाइश पूरी करने से लेकर हमारे लिए हर ख़ुशी ढूंढने तक. ऐसे में ऐसे रिश्तों को दिन में बांधना उचित तो नहीं कहा जा सकता।
मैं तो अपने ममा-पापा को हमेशा मिस करती हूँ, क्लास में भी. चलिए आज पापा के साथ अपनी शरारतें आपके साथ शेयर करती हूँ, ममा के इस बाल-गीत के साथ-
*********************

पापा मेरे सबसे प्यारे
मुझको खूब घुमाते हैं
मैं जब करूँ शरारतें
प्यार से समझाते हैं।

मुझको स्कूल छोड़ने जाते
होमवर्क भी करवाते हैं
उनकी पीठ पर करूँ सवारी
हाथी-घोड़ा बन जाते हैं।

आफिस से जब आते पापा
मुझको खूब दुलराते हैं
चाकलेट, फल, मिठाई लाते
हमको खूब हँसाते हैं।


बुधवार, जून 16, 2010

पाखी की पेंटिंग..बढ़िया है ना !!

इस संडे को मैंने एक पेंटिंग बनाई. उसमें ढेर सारे रंग भरें-काले, पीले, नीले, लाल और भी कई. अब आप बताइए कि आपको कैसी लगी मेरी यह पेंटिंग...बढ़िया है ना !!

रविवार, जून 13, 2010

पाखी की सतरंगी छटा

अपनी फोटो देखना किसे अच्छा नहीं लगता और यदि कोई आपको ही ड्राइंग करे तो कित्ता मजेदार.
मुझे तो अपनी फोटो देखना बहुत अच्छा लगता है. और यदि कोई आपकी पेंटिंग बनाये तो कित्ता मजेदार.

और फिर आप डाक-टिकट पर भी दिखने लगें तो और भी मजेदार...

और ये आशू अंकल की तरफ से मेरा प्यारा सा चित्र..आपको भी पसंद आएगा .

शुक्रवार, जून 11, 2010

सूरज बन मुस्काऊँ : अक्षिता (पाखी के चित्रों के साथ रावेंद्रकुमार रवि का नया शिशुगीत

सूरज बन मुस्काऊँमैंने चित्र बनाए सुंदर,
आओ, तुम्हें दिखाऊँ!
इन्हें बनाकर ख़ुश होता है,
मेरा मन, मैं गाऊँ!
तोता लटका है बादल से,
देखे सूरज नीला!
खरबूजा भी लुढ़क रहा है,
आसमान में पीला!
चूहा, हाथी, फूल हँस रहे,
मैं भी सबको भाऊँ!
मैंने चित्र बनाए ... ... .
गुड्डा मेरा हँसे जा रहा,
चिड़िया गीत सुनाए!
मस्त हवा में पेड़ झूमता,
जोकर नाच दिखाए!
दूर पहाड़ी के पीछे से,
सूरज बन मुस्काऊँ
मैंने चित्र बनाए ... ... .
!! आप सभी लोगों ने मेरी ड्राइंग तो खूब देखी होगी पर आज मेरे बनाये गए चित्रों के साथ रावेन्द्र कुमार 'रवि' अंकल द्वारा 'सरस पायस' पर रचा गया नया शिशुगीत 'सूरज बन मुस्काऊँ' भी पढ़िए. तो ये रहा रवि अंकल का प्यारा सा शिशु-गीत और मेरे सुन्दर-सुन्दर चित्र. इसे पढ़कर जरुर बताइयेगा कि यह संयोजन कैसा रहा !!













गुरुवार, जून 10, 2010

पाखी की शरारत

कई बार शरारतें कित्ती अच्छी लगती हैं. जैसे बकेट से नहाने की बजाय उसमें खड़े होकर मस्ती करना...

..और जब कोई निकलने को कहे तो उन्हें जीभ निकालकर चिढाना..

है ना मजेदार !!

सोमवार, जून 07, 2010

पाखी के लिए समीर अंकल की प्यारी सी कविता

ये देखिये हम क्या लाये. इस बार समीर अंकल जी को लाये. उन्होंने एक प्यारी सी कविता लिखी है मेरे लिए. चलिए सभी इसे पढ़ते हैं और समीर अंकल जी को ढेर सारा प्यार व थैंक्स बोलते हैं. आखिर वो सबसे अच्छे वाले अंकल और उड़न तश्तरी में घुमाने वाले अंकल जो हैं.

मम्मी-पापा मुझको पढ़ने
स्कूल में भिजवाते हैं
कक्षा में मैं अव्वल आऊँ
होमवर्क खूब करवाते हैं।


हष्ट पुष्ट और ताकतवर हूँ
बीमारी मुझको न पकड़े
इसकी खातिर नित नियम से
दूध मुझे पिलवाते है।

शाम पार्क में मम्मी लाती
मुझको खूब घूमाती है
रात में जल्दी खाना खाते
फिर सोने ले जाती है।


सोने से पहले वो मुझको
रोज कहानी बतलाती
अच्छा जीवन क्या होता है
पाठ मुझे वो सिखलाती।

अब आप जरुर बताइयेगा कि ये कविता कैसी लगी आपको. और समीर अंकल को ढेर सारा प्यार !!

शनिवार, जून 05, 2010

वृक्ष कहीं न कटने पाएं (विश्व पर्यावरण दिवस)

आपको पता है, आज विश्व पर्यावरण दिवस है। पर्यावरण तो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है, इसके बिना हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं. हम निरोगी रहें, स्वस्थ रहें, अच्छी वायु मिले॥इन सबके लिए पर्यावरण का शुद्ध होना बहुत जरुरी है. यदि पर्यावरण को हम स्वच्छ नहीं रखेंगे और उसे नुकसान पहुंचाएंगे तो वह भी हमसे नाराज हो जायेगा. हम अपने पार्क में चारों तरफ ढेर सारे पेड़-पौधे व फूल देखकर कितना खुश होते हैं, पर कल को यह सब नहीं रहेगा तो कितना ख़राब लगेगा. चारों तरफ फैला समुद्र, पहाड़ और उनके बीच हरे-भरे पेड़-पौधे और फूलों कि पंखुड़ियाँ और कलरव करती चिड़िया देखकर कितना आनंद आता है, यहाँ हम लोग घूमने जाते हैं...जब सब ख़त्म हो जायेगा तो रोने के सिवाय कुछ भी नहीं बचेगा. यह हमारी पृथ्वी ही है, जहाँ इतनी विविधता है और यहीं पर जीवन भी है. इसीलिए इस बार के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम भी है- '' कई प्रजातियाँ, एक ग्रह, एक भविष्य.''...तो आइये आज हम लोग संकल्प उठाते हैं की प्रकृति को कोई नुकसान नहीं पहुँचायेगे. अपने अस-पास के पेड़-पौधों और फूलों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. पानी बर्बाद नहीं करेंगे और जीव-जंतुओं को भी परेशान नहीं करेंगे. समुद्र व नदी में कूड़ा व पालीथीन भी नहीं डालेंगे. यदि हर कोई ऐसे सोचेगा तो फिर प्रकृति और पर्यावरण भी खुश होंगे. चलते-चलते पापा की लिखी गई यह बाल-कविता पढ़ते हैं-

सुन्दर-सुन्दर वृक्ष घनेरे
सबको सदा बुलाते
ले लो फल-फूल सुहाने
सब कुछ सदा लुटाते ।

करते हैं जीवन का पोषण
नहीं करो तुम इनका शोषण
धरती पर होगी हरियाली
तो सारे जग की खुशहाली।

वृक्ष कहीं न कटने पाएं
संकल्पों के हाथ उठाएं
ढेर सारे पौधे लगाकर
धरती से मरूभूमि भगाएं।
( इसकी चर्चा "रविवासरीय चर्चा-मनोज कुमार" (चर्चा मंच-175) के अंतर्गत भी देखें )

बुधवार, जून 02, 2010

रोटी का कमाल

कल शाम को मैं मम्मी-पापा के साथ बाहर एक रेस्तरां में डिनर के लिए गई. वहाँ जब मैंने रुमाली रोटी माँगी तो वेटर ने इत्ती बड़ी रुमाली रोटी दे दी कि मैं देखती ही रह गई. इसमें तो मैं चाहूँ तो छुप भी जाऊँ . है ना मजेदार...!!

( इस पोस्ट की चर्चा इस दुनिया में सबसे न्यारे (चर्चा मंच - 174) के अंतर्गत भी देखें )

मंगलवार, जून 01, 2010

अंडमान में आया भूकंप

आपको पता है आज रात 1: 28 के करीब अंडमान-निकोबार में भूकम्प आया। इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.6 मापी गई. इससे पहले 30 मार्च की रात 10:27 बजे के करीब डेढ़ मिनट भूकंप के झटके महसूस हुए थे. इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर पोर्टब्लेयर में 6.3 और मायाबंदर में 6.9 आंकी गई थी. उस समय जब भूकंप आया था तो अधिकतर भाग में बिजली नहीं थी और लोग सोने की तैयारी में थे. अचानक महसूस हुआ कि बेड, ए. सी. और खिड़कियाँ जोर-जोर से हिल रही हैं, चूँकि ईधर भूत-प्रेत की बातें उतनी प्रचलित नहीं हैं, सो उधर ध्यान ही नहीं गया. फिर लगा कि घर की पेंटिंग हो रही है और पीछे मजदूर सीढ़ी लगाकर छोड़ गए हैं. उसे ही कोई हिला रहा है. उस समय मैं बिस्तर पर खूब कूद रही थीं, सो एक बार यह भी दिमाग में आया कि बेड इसी के चलते हिल रहा है. अगले ही क्षण जब मम्मी-पापा ने बताया कि यह भूकम्प हो सकता है तो हम सब बेड पर एकदम बीचों-बीच में इस तरह बैठ गए कि कोई चीज गिरे भी तो हम लोगों के ऊपर न गिरे. लगभग डेढ़ मिनट तक हम लोग भूकम्प के हिचकोले खाते रहे. शरीर के रोंगटे खड़े हो गए थे. फिर शांत हुआ तो अन्य लोगों से फोन करके कन्फर्म किया कि वाकई ये भूकम्प ही था. क्योंकि यह हम लोगों का पहला भूकम्प-अनुभव था. फ़िलहाल बात आई और गई हो गई और हम लोग सो गए.

कल रात का भूकंप भी भयावह था. आधी रात्रि में सभी लोग सो रहे थे कि 1: 28 के करीब चीजें अचानक हिलने आरंभ हो गईं. कुछ लोगों को तो सोने में पता भी नहीं चला. मैं भी सो रही थी और मुझे भी पता नहीं चला. मम्मी की नींद अचानक खुल गई और उन्होंने पापा को भी जगाया. सुबह मुझे भी बताया. मम्मी-पापा सोच ही रहे थे कि बाहर निकलकर खुले में चला जाये तो सेफ होगा, पर इसी बीच भूकंप ख़त्म भी हो गया. मैं तो यह सब सोचकर ही डर गई, पर जब सब बीत जाता है तो कित्ता रोमांच पैदा होता है कि मानो झूला झूल रहे थे. सुबह जगकर चेक किया गया कि घर में कहीं दरार तो नहीं पड़ी, पर कुछ नहीं हुआ था. यहाँ तो घर भी ऐसे ही बनाये जाते हैं कि नुकसान न हो और भूकंप इत्यादि का उन पर प्रभाव न पड़े. सुबह टी. वी. पर देखा तो इस भूकंप तीव्रता 6.6 बताई जा रही थी. वैसे समुद्र के बीच में अवस्थित होने के कारण यहाँ भूकंप आम बात है और जल्दी कोई नुकसान भी नहीं होता. पर डर तो लगता ही है. अच्छा हुआ जो मैं मस्ती से सो रही थी, नहीं तो रात में कित्ता डर लगता !!
( और हाँ, सुबह-सुबह जगकर मैंने अपनी अल्मिरा, ट्वॉयज और सायकिल भी चेक की, कि सब सेफ तो हैं न. और अब हो रही है सायकिल पर टेडी-बियर को बिठाकर घुमाने की तैयारी)