आप सब 'पाखी' को बहुत प्यार करते हैं...

बुधवार, अक्तूबर 27, 2010

समुद्र के किनारे पाखी की कलाकारी


यह देखो मैंने समुद्र के किनारे क्या बनाया.
नहीं समझ में आया...अच्छा ये देखिये.
अले वाह, यह तो बन गया...हुर्रे.अब आप भी देख लीजिये. पहले मैंने रेत का टीला बनाया और फिर उसे कोरल्स, सी-शेल, सीप ...और भी बहुत कुछ, से सजाया. अच्छा लग रहा है ना !!

गुरुवार, अक्तूबर 21, 2010

पाखी की इक और ड्राइंग...


..ये रही मेरी एक और ड्राइंग. इसमें मैंने सूरज दादा बनाया, बादल बनाया, फूल बनाये...अले सब मैं ही बता दूंगीं तो आप क्या बताएँगे. अच्छी लगी ना आपको मेरी यह ड्राइंग !!

शनिवार, अक्तूबर 16, 2010

नवरात्र और दशहरा...धूमधाम वाले दिन आए

आज नवरात्र का अंतिम दिन है. कित्ती धूमधाम दिखती है चारों तरफ. कहीं माँ दुर्गा की मूर्तियाँ सजी हुई हैं तो बढ़िया-बढ़िया गाने भी बज रहे हैं. घर में तो आजकल फल, मिठाई और फूलों की पूछिये ही नहीं. मैं तो व्रत नहीं रहती पर व्रत वाले फल इत्यादि खाने में बहुत तेज हूँ. मंदिर में जाकर दर्शन भी करना नहीं भूलती. वहाँ तो बहुत भीड़ होती है. जिसे देखो सब माता जी का दर्शन करने आते हैं. मैंने तो माता जी की खूब पूजा की और आशीर्वाद भी माँगा।पिछले साल जब मैं कानपुर थी तो नवरात्र में मम्मी-पापा के साथ माता जी का दर्शन करने मन्दिर गई तो पुजारी जी ने मुझे एक नहीं दो-दो चुनरी ओढाई, गले में माला डाली और ढेर सारा प्रसाद दिया। वह तो मुझे कभी नहीं भूलता. कल तो दशहरा है. मैंने तो पूरी लिस्ट बना ली है कि क्या-क्या खरीदना है और क्या-क्या खाना है. इस मामले में हम बच्चों का कोई सानी नहीं. दशहरे में मुझे रावण से बहुत डर लगता है. उसकी हंसी कित्ती डरावनी होती है-हा..हा..हा..हा..पिछले साल जब मैं कानपुर में थी तो खूब बड़ा सा रावण देखा था और फिर उसे जला दिया गया..कित्ती आतिशबाजी हुई थी. मैंने तो डर कर अपने कान ही बंद कर लिए थे. अब देखिये इस बार क्या करती हूँ. आप सभी लोगों को नवरात्र और दशहरा की बधाई और ऐसे ही मुझे अपना प्यार और आशीर्वाद देते रहिएगा. मैं तो चली सुबह-सुबह मम्मा का हाथ बँटाने और फिर मिठाइयाँ खाने !!

बुधवार, अक्तूबर 13, 2010

'पाखी की दुनिया' के 100 पोस्ट पूरे ..ये मारा शतक !!

वाह, मेरे ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' पर 100 पोस्ट पूरी हो गई...ये मारा शतक. इस शतक की ख़ुशी में पापा ने मेरा मुंह मीठा कराया और फिर ये सुन्दर सी तस्वीर आपके लिए...और ये मैंने ममा का मुंह मीठा कराया...
पापा ने मुझे एक प्यारी सी घडी भी दी. यह रात में रोशनी करती है. इसमें दो घोड़े भी बने हुए हैं. ..और हाँ, जब स्विच-ऑन करो तो घोड़ों की आवाज़ भी सुनाई देती है. अब ये मेरे टेबल की शोभा बढ़ाएगी और समय भी बताएगी.
प्यारी है ना ये घोड़ों वाली घडी...और ये खूबसूरत 100 लाल-गुलाब भी...प्यारे-प्यारे. यह आप सभी के लिए, जो मुझे इत्ता प्यार करते हैं. आप मुझे प्यार नहीं करते तो ये शतक कैसे बनता !!

सोमवार, अक्तूबर 11, 2010

फूलों के बीच पाखी

अंडमान में घूमने-फिरने का खूब मजा है. पिछले दिनों मैं मम्मा-पापा के साथ डिगलीपुर गई. पापा ने बताया यह दक्षिण अंडमान का सबसे अंतिम क्षोर है. पापा को आफिस विजिट करने जाना था, सो वह चले गए. फिर मैं गेस्ट-हॉउस से बाहर निकली तो वहां ढेर सारे फूल दिखाई दिए. फिर तो मैंने मम्मा को आवाज़ दी और खूब फोटोग्राफी कराई. वाह, यह पीले-पीले फूल कित्ते अच्छे लग रहे हैं. वह भी ढेर सारे. इन पर तो तितलियाँ भी छिप जायेंगीं. और यह लाला वाला फूल तो ऐसा लग रहा है, जैसे मधुमखी ने अपना घर बनाया हो. यह तो प्यारा सा गुलाब है. सभी फूलों का राजा. मुझे तो बहुत अच्छा लगता है. एक तोड़कर मम्मा को देती हूँ. यह तो रजनीगंधा है...इसकी खुशबू..वाह. यहाँ तो गेंदे के ढेर सारे फूल खिले हुए हैं. एक फोटो यहाँ भी.
अब यहाँ बैठकर थोडा सा आराम भी कर लेती हूँ. चलते-चलते इक स्टाइल यह भी...!!

मंगलवार, अक्तूबर 05, 2010

टेस्टी-टेस्टी केले....

आपको केले अच्छे लगते हैं, मुझे तो केला खाना बहुत अच्छा लगता है. यहाँ अंडमान में खूब केले मिलते हैं, पर नन्हें-नन्हें. ये देखिये मैंने केलों का पूरा गुच्छा ही कैसे ले लिया है। पूरे 17 हैं. इनका टेस्ट मेन-लैंड में मिलने वाले केलों से अलग है पर वाकई ये बहुत टेस्टी हैं. ...तो आप भी केले खाइए और खूब सेहत बनाइये।
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केले की बात पर याद आया कि बंदरों को केले बहुत पसंद हैं, पर अंडमान में तो बन्दर होते ही नहीं. यहाँ तो बस निकोबार में बन्दर मिलेंगें और वे केकड़े (Crab) भी खाते हैं. अंडमान के आदिवासी तो खूब केले खाते हैं. आपको जल्द ही उनकी भी फोटो दिखाउंगी ...!!

शनिवार, अक्तूबर 02, 2010

हम बच्चों के प्यारे गाँधी जी

आज गाँधी जी का जन्म दिन है. गाँधी जी को राष्ट्रपिता भी कहा जाता है. हमारी टीचर जी ने हमें गाँधी जी के बारे में ढेर सारी बातें बताईं. यह भी बताया कि गाँधी जी बच्चों से बहुत प्यार करते थे. हमने गाँधी जी की फोटो भी देखी है, जिसमें वे लाठी लेकर चलते हैं. यहाँ पोर्टब्लेयर में भी गाँधी जी की स्टैचू लगी हुई है. टीचर जी यह भी बता रही थीं कि गाँधी जी कभी अंडमान नहीं आए. मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि गाँधी जी बच्चों से काफी प्यार करते थे और हम बच्चे भी तो गाँधी जी को दिल से चाहते हैं.