आप सब 'पाखी' को बहुत प्यार करते हैं...

सोमवार, अक्तूबर 26, 2015

तुम जियो हजारों साल



हमारी प्यारी सिस्टर अपूर्वा 27 अक्टूबर को पूरे पाँच साल की हो जाएँगी। इनके हैप्पी बर्थ-डे पर आप सबका आशीष, स्नेह और प्यार तो मिलना ही चाहिये !!


अपूर्वा को जन्मदिन पर ढेर सारी बधाइयाँ और प्यार !!

Many-many Happy Returns of the day to our sweet sister Apurva.
Celebrating her Birthday on 27th October.

तुम जियो हजारों साल,साल के दिन हो पचास हजार 
"May you live a thousand years and may each year have a fifty thousand days"

गुरुवार, अक्तूबर 22, 2015

दशहरे पर रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण के साथ ही सूर्पनखा और ताड़का के पुतलों का भी दहन

दशहरा पर्व तो हमें बहुत अच्छा लगता है।  जब भी कोई त्यौहार आता है तो अब मम्मी-पापा से हम उसके बारे में ढेर सारा जानना चाहते हैं और फिर अपूर्वा को भी बताते हैं।  हर फेस्टिवल के पीछे कोई न कोई स्टोरी छुपी है, वाकई बड़ा रोमांच आता है यह सब जानकर-सुनकर। 

अब दशहरा को ही लीजिये।  रोज जिद करके मम्मी-पापा से रामायण के पात्रों के बारे में जानना चाहती हूँ।  अब तो इस पर बुक्स भी पढ़ रही हूँ।  पर एक बात नहीं समझ में आती कि जब रावण के पुतले को जलाना ही है तो उस पर इतना पैसा और मेहनत क्यूँ खर्च किया जाता है। हर साल जलाते है और फिर अगले साल हाजिर। वह भी पिछले साल से बड़ा। 

यहाँ जोधपुर में तो बरकतुल्लाह स्टेडियम के बगल में रावण का चबूतरा है, जहाँ हर साल दशहरे पर रावण को जलाया जाता है।  संभवत: जोधपुर ही ऐसा शहर है, जहाँ दशहरे पर रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण के साथ ही सूर्पनखा और ताड़का के पुतलों  दहन किया जाता है। एक तरफ रावण और उसके परिजनों का पुतला जलाना और दूसरी तरफ जोधपुर में दवे गोधा समाज के लोग अपने आप को रावण का वंशज मानते हैं, इसलिए ये लोग रावण दहन को नहीं देखते। जोधपुर में हमें राम लीला देखने को नहीं मिली।  

अधर्म पर धर्म की जीत 
अन्याय पर न्याय की जीत 
बुराई पर अच्छाई की जयजयकार 
यही है दशहरा का त्यौहार 
…… विजयदशमी पर्व पर आप सभी को सपरिवार शुभकामनाएँ !!


बुधवार, अक्तूबर 21, 2015

नवरात्र और बेटियाँ ...

नवरात्र हर साल आता है।  इस पर्व के बहाने बहुत सी बातें होती हैं, संकल्प उठाये जाते हैं।   इन नौ दिनों में हम मातृ शक्ति की आराधना करते। नवरात्र मातृ-शक्ति और नारी-सशक्तिकरण का प्रतीक है। आदिशक्ति को पूजने वाले भारत में नारी को शक्तिपुंज के रूप में माना जाता है। नारी सृजन की प्रतीक है. हमारे यहाँ साहित्य और कला में नारी के 'कोमल' रूप की कल्पना की गई है. कभी उसे 'कनक-कामिनी' तो कभी 'अबला' कहकर उसके रूपों को प्रकट किया गया है. पर आज की नारी इससे आगे है. वह न तो सिर्फ 'कनक-कामिनी' है और न ही 'अबला', इससे परे वह दुष्टों की संहारिणी भी बनकर उभरी है. यह अलग बात है कि समाज उसके इस रूप को नहीं पचा पता. वह उसे घर की छुई-मुई के रूप में ही देखना चाहता है. बेटियाँ कितनी भी प्रगति कर लें, पुरुषवादी समाज को संतोष नहीं होता. उसकी हर सफलता और ख़ुशी बेटों की सफलता और सम्मान पर ही टिकी होती है. तभी तो आज भी गर्भवती स्त्रियों को ' बेटा हो' का ही आशीर्वाद दिया जाता है. पता नहीं यह स्त्री-शक्ति के प्रति पुरुष-सत्तात्मक समाज का भय है या दकियानूसी सोच. 

नवरात्र पर देवियों की पूजा करने वाले समाज में यह अक्सर सुनने को मिलता है कि 'बेटा' न होने पर बहू की प्रताड़ना की गई. विज्ञान सिद्ध कर चुका है कि बेटा-बेटी का पैदा होना पुरुष-शुक्राणु पर निर्भर करता है, न कि स्त्री के अन्दर कोई ऐसी शक्ति है जो बेटा या बेटी क़ी पैदाइश करती है. पर पुरुष-सत्तात्मक समाज अपनी कमजोरी छुपाने के लिए हमेशा सारा दोष स्त्रियों पर ही मढ़ देता है. ऐसे में सवाल उठाना वाजिब है क़ी आखिर आज भी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह से क्यों ग्रस्त है पुरुष मानसिकता ? कभी लड़कियों के जल्दी ब्याह क़ी बात, कभी उन्हें जींस-टॉप से दूर रहने क़ी सलाह, कभी रात्रि में बाहर न निकलने क़ी हिदायत, कभी सह-शिक्षा को दोष तो कभी मोबाईल या फेसबुक से दूर रहने क़ी सलाह....ऐसी एक नहीं हजार बिन-मांगी सलाहें हैं, जो समाज के आलमबरदार रोज सुनाते हैं. उन्हें दोष महिलाओं क़ी जीवन-शैली में दिखता है, वे यह स्वीकारने को तैयार ही नहीं हैं कि दोष समाज की मानसिकता में है.

'नवरात्र' के दौरान अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराने की परंपरा रही है. लोग उन्हें ढूढ़ने के लिए गलियों की खाक छानते हैं, पर यह कोई नहीं सोचता कि अन्य दिनों में लड़कियों के प्रति समाज का क्या व्यवहार होता है। आश्चर्य होता है कि यह वही समाज है जहाँ भ्रूण-हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार जैसे मामले रोज सुनने को मिलते है पर नवरात्र की बेला पर लोग नौ कन्याओं का पेट भरकर, उनके चरण स्पर्श कर अपनी इतिश्री कर लेना चाहते हैं। आखिर यह दोहरापन क्यों? इसे समाज की संवेदनहीनता माना जाय या कुछ और? आज बेटियां धरा से आसमां तक परचम फहरा रही हैं, पर उनके जन्म के नाम पर ही समाज में लोग नाकभौं सिकोड़ने लगते हैं। यही नहीं लोग यह संवेदना भी जताने लगते हैं कि अगली बार बेटा ही होगा। इनमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। वे स्वयं भूल जाती हैं कि वे स्वयं एक महिला हैं। आखिर यह दोहरापन किसके लिए ?

समाज बदल रहा है। अभी तक बेटियों द्वारा पिता की चिता को मुखाग्नि देने के वाकये सुनाई देते थे, हाल के दिनों में पत्नी द्वारा पति की चिता को मुखाग्नि देने और बेटी द्वारा पितृ पक्ष में श्राद्ध कर पिता का पिण्डदान करने जैसे मामले भी प्रकाश में आये हैं। फिर पुरूषों को यह चिन्ता क्यों है कि उनकी मौत के बाद मुखाग्नि कौन देगा। अब तो ऐसा कोई बिन्दु बचता भी नहीं, जहाँ महिलाएं पुरूषों से पीछे हैं। फिर भी समाज उनकी शक्ति को क्यों नहीं पहचानता? समाज इस शक्ति की आराधना तो करता है पर वास्तविक जीवन में उसे वह दर्जा नहीं देना चाहता। ऐसे में नवरात्र पर नौ कन्याओं को भोजन मात्र कराकर क्या सभी के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई ....??



(मम्मी के ब्लॉग से साभार। यह पोस्ट अच्छी लगी, अत: आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ)

बुधवार, अक्तूबर 14, 2015

नवरात्रि का पर्व



नवरात्रि का पर्व आरम्भ हो चुका है।  इस बार हम यह त्यौहार जोधपुर में मना रहे हैं।  यहाँ पर मेहरानगढ़ स्थित चामुण्डा देवी का मंदिर काफी प्रसिद्ध है।  हमें वहाँ भी जाना है।  कहा जाता है कि जब 1965 का युद्ध हुआ था, तब सबसे पहले जोधपुर को टारगेट बनाया गया था और मां चामुंडा ने चील के रूप में प्रकट होकर जोधपुरवासियों की जान बचाई थी और किसी भी तरह का कोई नुकसान जोधपुर को नहीं होने दिया था। तब से जोधपुर वासियों में मां चामुंडा के प्रति अटूट विश्वास है। 


इस शुभ पर्व पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएँ और आपका आशीर्वाद व स्नेह तो हमें चाहिए ही !!