आप सब 'पाखी' को बहुत प्यार करते हैं...

गुरुवार, मई 19, 2016

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा प्रकाशित पुस्तक में 'नन्ही ब्लॉगर पाखी की ऊँची उड़ान'


(अक्षिता यादव उर्फ पाखी देश की सबसे छोटी हिन्दी ब्लॉगर के रूप में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से (मात्र चार साल आठ माह की उम्र में) सम्मानित हो चुकी हैं। दिल्ली के हिन्दी भवन में भी अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में जब हिस्सा लेने गयी तो सभी ने उन्हें गोद में उठा लिया। यहाँ उन्हे “बेस्ट बेबी” ब्लॉगर का अवार्ड दिया गया। हिंदुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड के लिए भी उन्हें नामांकित किया गया । अब तो जहाँ  भी ब्लॉगरों  का सम्मेलन होता है, तो पाखी को जरूर बुलाया जाता है। लखनऊ, काठमांडू और श्रीलंका में भी अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में हो आईं। जब कुछ नया बनाती तो तत्काल अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर देती हैं। पाखी बड़ी होकर आईएएस अफसर बनकर समाज और विशेषकर गरीबों की मदद करना चाहती हैं।) 


‘मेरा नाम अक्षिता है। मेरा निक नेम पाखी है। पाखी यानी पक्षी या चिड़िया। मैं भी तो एक चिड़िया हूँ जो दिन भर इधर-उधर फुदकती रहती हूँ। मेरा जन्म 25 मार्च 2007 को कानपुर में हुआ और फिलहाल मैं कक्षा चार  की विद्यार्थी हूँ ।'' . . . यह है “पाखी की दुनिया” की नन्ही ब्लॉगर अक्षिता यादव उर्फ पाखी के ब्लॉग की चंद लाइनें। पाखी देश की पहली सबसे कम उम्र की हिन्दी ब्लॉगर के रूप में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (2011) विजेता हैं। उन्हें यह पुरस्कार मात्र चार साल 8 माह की उम्र में महिला व बाल विकास मंत्रालय की तत्कालीन मंत्री कृष्णा तीरथ द्वारा प्रदान किया गया। इसी साल नयी दिल्ली के हिन्दी भवन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में “बेस्ट बेबी ब्लॉगर अवार्ड” से नवाजा गया। हिंदुस्तान टाइम्स वुमेन  अवार्ड (2013) के लिए भी उन्हें  नन्ही ब्लॉगर के रूप में अभिनेत्री शबाना आजमी, सांसद डिंपल यादव व संगीतकार साजिद द्वारा सम्मानित किया गया। लखनऊ में आयोजित द्वितीय अंतराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन (2012) में विशेष रूप से सम्मानित किया गया। काठमांडू में आयोजित तृतीय अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में सबके आकर्षण का केन्द्र रहीं और वहाँ के पूर्व मंत्री व विधानसभा अध्यक्ष अर्जुन नरसिंह ने सम्मानित किया। 

पाखी का जन्म कानपुर में हुआ। उस वक्त भारतीय डाक सेवा में अधिकारी उनके पिता कृष्ण कुमार यादव वहीं पोस्टेड  थे। माँ आकांक्षा और पापा अपने ब्लॉग में कुछ न कुछ पोस्ट किया करते थे। पाखी ने पूछा कि आप लोग मेरी पेंटिंग्स क्यों पोस्ट नहीं करते। पाखी की बात सबको जंच गयी। 24 जून 2009 को शुरू हुआ “पाखी की दुनिया” ब्लॉग। शुरू-शुरू में ड्राइंग अपलोड किया गया। पाखी की सृजनशीलता यहीं तक सीमित नहीं रही। उन्होंने अपने किस्से-कहानी लिखना शुरू किये। फिर कविताएं और विचार भी पोस्ट होने लगे। पिता ने कैमरा लाकर दिया तो पाखी के खींचे बेहतरीन चित्र भी ब्लॉग में जगह पाने लगे। विविधता लिए पाखी का ब्लॉग बेहद पसंद किये जाने लगा। देश की सीमाओ को लांघकर लगभग सौ देशों में 272 लोग नियमित फॉलोवर  बन गये। जब पाखी की पहुँच फेसबुक में हुई तो वहाँ तो 1,600 से ज्यादा लोग उनके पेज पर मित्र बन गये। गूगल प्लस में भी 240 फालोअर पाखी के ब्लॉग के पक्के पाठक बन गये। पाखी की इस सृजनशीलता और लोकप्रियता से प्रभावित होकर राजस्थान के मशहूर बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा ने अपनी बाल कविता की किताब “चूं-चूं” पर पाखी का चित्र ही लगा लिया। 

पाखी के ब्लॉग में उनके पारिवारिक ब्लॉग्ज़ शब्द शिखर, शब्द सृजन की ओर, डाकिया डाक लाया, सतरंगी प्रेम, बाल दुनिया, उत्सव के रंग, अपूर्वा के भी लिंक दिए हुए हैं।  अक्षिता के ब्लॉग में बेहद रोचक जानकारियां, कलाचित्र,फोटोग्राफ,कविताएं,संस्मरण, विचार, पत्र, यात्रा वृतांत, व स्कूल की गतिविधियों के अलावा परिवार में होने वाली छोटी-छोटी घटनाएं भी निरंतर जगह पा रही हैं। पाखी के कुछ पोस्ट यथा “बेटियों को मारो नहीं”, ”ममा का जन्मदिन आया”, ”पाखी माने पंछी या चिड़िया” व अंडमान-निकोबार के 62वें वनमहोत्सव पर “पाखी का गुलाब”आदि पोस्ट सचमूच पठनीय हैं। 

पाखी की मम्मी आकांक्षा यादव बताती हैं कि पाखी बेहद शरारती है लेकिन उससे ज्यादा सृजनात्मक है। उसे पेंटिंग के अलावा फोटोग्राफी, कम्प्यूटर खेल, नृत्य व पढ़ना भाता है। वह हैप्पी ऑवर्स स्कूल, जोधपुर में क्लास चार की छात्रा हैं। शाकाहारी पाखी को पनीर पुलाव, पनीर पराठे,पनीर पकोड़े व आइसक्रीम बेहद पसंद हैं। पाखी की  एक छोटी बहिन अपूर्वा भी हैं, जिनके साथ उनकी खूब छनती है। पाखी अंडमान-निकोबार को काफी याद करती हैं, जहाँ उन्होंने  काफी  मस्ती की और अपने ब्लॉग में शेयर भी किया। पाखी के पिता कृष्ण कुमार यादव बताते हैं कि पाखी जब मात्र तीन साल की थी तभी से मोबाइल, टेबलेट और लैपटॉप से दोस्ती कर ली थी। अगर देखा जाए तो आज बच्चों के खिलौने बदल गये हैं। 

पाखी बड़ी होकर आईएएस अफसर बनना चाहती हैं। पाखी को अपनी किताबें फेंकना या बेचना पसंद नहीं है।  वे अपनी किताबें, खिलौने और कपड़े जरूरतमंद को देना पसंद करती हैं। पाखी अपनी सामग्री अपने ब्लॉग (http://pakhi-akshita.blogspot.in) पर स्वयं अपलोड करती हैं। 

पुस्तक का नाम -   ‘. .और हमने कर दिखाया’ (देश के कुछ प्रतिभावान बच्चों की कहानियाँ )
संपादक - प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव
प्रकाशक - उतर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ 

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ  द्वारा प्रकाशित पुस्तक "...और हमने कर दिखाया" (देश के कुछ प्रतिभावान बच्चों की कहानियाँ, सम्पादन-प्रेमेंद्र श्रीवास्तव)  में अक्षिता (पाखी) पर भी 'नन्ही ब्लॉगर पाखी की ऊँची उड़ान" शीर्षक से एक अध्याय ...आभार !!